Google photos AI Edit Photo: गूगल फोटोज़ ने एक नया फीचर(AI Edit Photo) पेश किया है जो AI पारदर्शिता में एक बड़ा कदम है: AI से एडिट की गई फोटोज़ के लिए एक इंडिकेटर। यह टूल यूज़र्स को ऐसी इमेजेज पहचानने में मदद करता है जिन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बदला गया है। ये डिजिटल कंटेंट की सच्चाई के बारे में बढ़ती चिंताओं को दूर करने की कोशिश है। जैसे-जैसे AI तकनीक इमेज बदलने में ज्यादा तेज़ होती जा रही है, AI से बनाई या बदली गई चीज़ों को साफ तौर पर लेबल करने की ज़रूरत बढ़ गई है।
गूगल फोटोज़ में नया AI एडिट फोटो इंडिकेटर(AI Edit Photo) यूज़र्स को असली और AI से बदली गई इमेजेज में फर्क करने का तरीका देता है। इस आर्टिकल में हम देखेंगे कि ये फीचर कैसे काम करता है, इसके फायदे और सीमाएं क्या हैं, और दूसरे प्लेटफॉर्म्स के तरीकों से ये कैसे अलग है। हम इस बदलाव के बड़े असर के बारे में भी बात करेंगे – जैसे फोटो की सच्चाई, कंटेंट पर नज़र रखना, और इमेज प्रोसेसिंग में AI का भविष्य। इन बातों को समझना बहुत ज़रूरी है क्योंकि AI हमारे देखने के तजुर्बे और ऑनलाइन बातचीत को बदल रहा है।
गूगल फोटोज़ के नए AI Edit इंडिकेटर की जानकारी
गूगल फोटोज़ (AI Edit Photo) से एडिट की गई इमेजेज के बारे में ज्यादा जानकारी देने के लिए एक नया फीचर ला रहा है। अगले हफ्ते से, ऐप साफ तौर पर दिखाएगा कि कोई फोटो मैजिक एडिटर और मैजिक इरेज़र जैसे AI टूल्स से बदली गई है या नहीं। ये जानकारी फाइल नाम, लोकेशन और बैकअप स्टेटस जैसी दूसरी डिटेल्स के साथ दिखेगी। इमेज के ‘डिटेल्स’ पेज में एक नया ‘AI इन्फो’ सेक्शन होगा जिसमें ‘क्रेडिट’ और ‘डिजिटल सोर्स टाइप’ जैसी जानकारी होगी। ये लेबलिंग जेनरेटिव AI एडिट्स और नॉन-जेनरेटिव फीचर्स जैसे बेस्ट टेक और एड मी दोनों पर लागू होगी। ये मेटाडेटा इंटरनेशनल प्रेस टेलीकम्युनिकेशंस काउंसिल (IPTC) के स्टैंडर्ड्स पर आधारित है। गूगल का प्लान है कि वो फीडबैक लेते रहेंगे और AI एडिट्स के बारे में और पारदर्शिता लाने के लिए अतिरिक्त समाधानों पर विचार करेंगे।
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AI से एडिट की गई इमेजेज को कैसे पहचानें
गूगल फोटोज़ AI से एडिट की गई इमेजेज को पहचानना आसान बना रहा है। अगले हफ्ते से, ऐप इमेज के ‘डिटेल्स’ पेज में एक नया ‘AI इन्फो’ सेक्शन दिखाएगा। इस सेक्शन में ‘क्रेडिट’ और ‘डिजिटल सोर्स टाइप’ जैसी जानकारी होगी, जो साफ तौर पर बताएगी कि फोटो को मैजिक एडिटर, मैजिक इरेज़र या ज़ूम एन्हांस जैसे AI टूल्स से बदला गया है या नहीं। यूज़र्स इस जानकारी को फाइल नाम, लोकेशन और बैकअप स्टेटस जैसी दूसरी डिटेल्स के साथ देख सकेंगे। ऐप मेटाडेटा का इस्तेमाल करके ये भी बताएगा कि कोई इमेज अलग-अलग फोटोज़ के हिस्सों से बनी है या नहीं, जैसे कि बेस्ट टेक या एड मी फीचर्स से बनाई गई इमेजेज। इस पारदर्शिता से यूज़र्स को समझने में मदद मिलेगी कि उनकी फोटोज़ को कैसे बदला गया है, खासकर जब AI एडिटिंग(AI Edit Photo) में शामिल हो।
AI Edit Photo के फायदे और सीमाएं
गूगल फोटोज़ में नए AI एडिट लेबल्स(AI Edit Photo) के कई फायदे हैं। वे पारदर्शिता बढ़ाते हैं क्योंकि वे साफ तौर पर बताते हैं कि इमेजेज को बदलने के लिए AI टूल्स का इस्तेमाल किया गया है या नहीं। इससे यूज़र्स को असली और बढ़ाई गई कंटेंट में फर्क करने में मदद मिलती है, जो डिजिटल मीडिया की सच्चाई के बारे में बढ़ती चिंताओं को दूर करता है। ये लेबल मौजूदा मेटाडेटा स्टैंडर्ड्स पर बने हैं, जिससे प्लेटफॉर्म्स के लिए AI से एडिट की गई इमेजेज को पहचानना आसान हो जाता है।
हालांकि, इस तरीके की कुछ सीमाएं भी हैं। AI की जानकारी सिर्फ डिटेल्स व्यू में दिखाई देती है, सीधे इमेज पर नहीं। इसका मतलब है कि सोशल मीडिया या मैसेजेज में फोटो देखते समय यूज़र्स को तुरंत पता नहीं चल पाएगा कि AI एडिटिंग हुई है या नहीं। आलोचकों का कहना है कि बिना स्पष्ट विज़ुअल वॉटरमार्क के, AI से एडिट की गई फोटोज़ रोज़मर्रा की ऑनलाइन ज़िंदगी में आसानी से घुल-मिल सकती हैं, जिससे असली और सिंथेटिक कंटेंट के बीच की रेखा धुंधली हो सकती है।
दूसरे प्लेटफॉर्म्स के तरीकों से तुलना
AI एडिट लेबलिंग के मामले में गूगल का तरीका दूसरी टेक कंपनियों से अलग है। उदाहरण के लिए, एप्पल ने आने वाले iOS 18.2 रिलीज़ के साथ एक ज्यादा सावधान रुख अपनाया है। एप्पल फोटो की सच्चाई पर AI के असर को लेकर चिंतित है और फोटोरियलिस्टिक कंटेंट जनरेशन से दूर रह रहा है। वहीं दूसरी तरफ, मेटा ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर AI कंटेंट लेबलिंग लागू की है। गूगल का प्लान है कि वो इस साल के आखिर में सर्च रिज़ल्ट्स में AI इमेजेज को पहचानेंगे। हालांकि, दूसरे प्लेटफॉर्म्स पर प्रगति धीमी है। ये तकनीकी नवाचार और कंटेंट की सच्चाई और यूज़र जागरूकता के बीच संतुलन बनाने की चुनौती को दर्शाता है। जैसे-जैसे AI इमेज टूल्स ज्यादा आम होते जाएंगे, यूज़र्स के लिए असली और सिंथेटिक कंटेंट में फर्क करना और मुश्किल हो सकता है।
निष्कर्ष-
गूगल फोटोज़ का नया AI एडिट इंडिकेटर AI से एडिट की गई इमेजेज को ज्यादा पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। ये फीचर यूज़र्स को असली और AI से बदली गई फोटोज़ में फर्क करने में मदद करता है, जो बहुत ज़रूरी हो गया है क्योंकि AI इमेजेज बदलने में बेहतर होता जा रहा है। ये ऑनलाइन फर्जी कंटेंट की चिंताओं से निपटने की अच्छी शुरुआत है, लेकिन अभी भी सुधार की गुंजाइश है ताकि हर कोई आसानी से AI एडिट्स को पहचान सके।
जैसे-जैसे AI फोटो बनाने और शेयर करने के तरीके को बदलता जाएगा, ऐसे टूल्स ईमानदारी बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएंगे। हालांकि गूगल का तरीका सही दिशा में एक कदम है, लेकिन साफ है कि टेक की दुनिया अभी भी AI से एडिट की गई कंटेंट से निपटने का सबसे अच्छा तरीका ढूंढ रही है। आगे बढ़ते हुए, मज़ेदार AI फीचर्स और चीज़ों को असली रखने के बीच सही संतुलन बनाना बहुत ज़रूरी होगा ताकि हम ऑनलाइन जो देखें उस पर भरोसा कर सकें।
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